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काली मां कौन ? और क्यों ? काली मां हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। काली शब्द का अर्थ काल और काले रंग से है। मां काली को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। पराशक्ति भगवती निराकार होकर भी देवताओं का दु:ख दूर करने के लिये युग-युग में साकार रूप धारण करके अवतार लेती हैं। हिंदू मान्यतानुसार काली जी का जन्म राक्षसों के विनाश के लिए हुआ था। काली मां को खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली माता को बल और शक्ति की देवी माना जाता है। इनकी महिमा अनंत है, इन्हीं से सृष्टि है यानी सम्पूर्ण ब्रह्मांड की संचालिका ये ही हैं। माना जाता है कि महादेव के महाकाल अवतार में देवी महाकाली के रूप में उनके साथ थीं। मां काली का गुणगान शब्दों से नहीं, भावों से किया जाता हैं। इनकी आराधना से मनुष्य के सभी भय दूर हो जाते हैं।
यह सिद्ध पीठ 257 साल पुरानी है और गाँव बरगढ़, पोस्ट भन्ढरिया, जिला गढ़वा, राज्य झारखंड में स्थित है। देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के सातवीं देवी की पूजा-उपासना की जाती है
Kali is the Hindu goddess (or Devi) of death, time, and doomsday and is often associated with sexuality and violence but is also considered a strong mother-figure and symbolic of motherly-love. Kali also embodies shakti - feminine energy, creativity and fertility - and is an incarnation of Parvati, wife of the great Hindu god Shiva. She is most often represented in art as a fearful fighting figure with a necklace of heads, skirt of arms, lolling tongue, and brandishing a knife dripping with blood.
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। आइए जानते हैं सातवीं देवी कालरात्रि के बारे में :- कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है। इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है। कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
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